Faiza - Me and my Memories of You!

Friday, April 1, 2011

फिर एक बार ----- FAIZA


फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो

फिर एक बार मुझे तुम अपना बना लो........

कुच्छ तो रास्ता होगा

तुमको तो पता होगा

बड़ी मुश्किल हो गयी है

मेरी कोई चीज़ खो गयी है

नींद कहीं चली गयी है

आँखों से दूर हो गयी है

इसे फिर से बुला लो

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



चाँद को देखके अश्क बहते हैं

लेकिन ये होंठ मुस्कुराते रहते हैं

उस चाँद से अपना अक्स हटा दो

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



हर दिन तुम्हारी याद लेके आता है

तुम्हे छोडके मेरे पास जाता है

बस इन यादों को इस दिल से मिटा

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



पूरे शहर में कोई अपना नहीं है

जागती आँखों में कोई सपना नहीं है

मौत से गहरी ख़ामोशी है...जगा दो

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



ज़ेहन की दीवारों पे कोई शक्ल सी उभरती है

रात की स्याही में रोशिनी सी उभरती है

तुम नहीं तो कौन है ये बता दो

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



आँखें बंद करते ही आ जाते हो

मेरे ज़ेहन-ओ- गुमाँ पे छा जाते हो

अब ये आँखें न खुले इन्हें सुला दो

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



उस दिन जब तुमने मेरी मांग भरी थी

क्या क़यामत क्या आसूदा घडी थी

हमें इस सफर की मंजिल तो दिखा दो

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



मैं परिवाश थी तुम्हारे आगोश में

ज़िन्दगी खियाबां थी फूलों से भरी थी

इस इबादत का न ऐसा सिला दो

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



बस येही चाहत है के जब अज़ल से मिलूं

तुम्हारी बाहें हों और आखरी सांस में लूँ

ज़िन्दगी मेरे साथ हों और मौत से मिला दो......

फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो......



फिर एक बार मुझे जीने की सजा दो

फिर एक बार मुझे तुम अपना बना लो........!

 
فاعزاه

posted by Faiza at 1:39 PM

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